मैं तुम लोगों से दूर हूँ: गजानन माधव मुक्तिबोध

main tum logo se door hun by gajanan madhav muktibodh

कविता

मैं तुम लोगों से इतना दूर हूँ
तुम्हारी प्रेरणाओं से मेरी प्रेरणा इतनी भिन्न है

कि जो तुम्हारे लिए विष है, मेरे लिए अन्न है।
मेरी असंग स्थिति में चलता-फिरता साथ है,

अकेले में साहचर्य का हाथ है,
उनका जो तुम्हारे द्वारा गर्हित हैं

किन्तु वे मेरी व्याकुल आत्मा में बिंबित हैं, पुरस्कृत हैं
इसीलिए, तुम्हारा मुझ पर सतत आघात है!!

सबके सामने और अकेले में।
( मेरे रक्त-भरे महाकाव्यों के पन्ने उड़ते हैं

तुम्हारे-हमारे इस सारे झमेले में )
असफलता का धूल-कचरा ओढ़े हूँ

इसलिए कि वह चक्करदार ज़ीनों पर मिलती है
छल-छद्म धन की

किन्तु मैं सीधी-सादी पटरी-पटरी दौड़ा हूँ
जीवन की।

फिर भी मैं अपनी सार्थकता से खिन्न हूँ
विष से अप्रसन्न हूँ

इसलिए कि जो है उससे बेहतर चाहिए
पूरी दुनिया साफ़ करने के लिए मेहतर चाहिए

वह मेहतर मैं हो नहीं पाता
पर, रोज़ कोई भीतर चिल्लाता है

कि कोई काम बुरा नहीं
बशर्ते कि आदमी खरा हो

फिर भी मैं उस ओर अपने को ढो नहीं पाता।
रेफ़्रीजरेटरों, विटैमिनों, रेडियोग्रेमों के बाहर की

गतियों की दुनिया में
मेरी वह भूखी बच्ची मुनिया है शून्यों में

पेटों की आँतों में न्यूनों की पीड़ा है
छाती के कोषों में रहितों की व्रीड़ा है

शून्यों से घिरी हुई पीड़ा ही सत्य है
शेष सब अवास्तव अयथार्थ मिथ्या है भ्रम है

सत्य केवल एक जो कि
दुःखों का क्रम है।

मैं कनफटा हूँ हेठा हूँ
शेव्रलेट-डॉज के नीचे मैं लेटा हूँ

तेलिया लिबास में पुरज़े सुधारता हूँ
तुम्हारी आज्ञाएँ ढोता हूँ।

कविता का अर्थ :

इस कविता का अर्थ इस प्रकार है:

कवि समाज से खुद को अलग और दूर महसूस करता है क्योंकि उसकी प्रेरणाएँ आम लोगों से भिन्न हैं। जो चीज़ें समाज के लिए विष के समान हैं, वे कवि के लिए जीवन का आधार हैं। वह अकेले होते हुए भी उन लोगों का साथ महसूस करता है, जिन्हें समाज ने तिरस्कृत कर दिया है, लेकिन वे उसकी आत्मा में सम्मानित और मूल्यवान हैं।

कवि पर समाज द्वारा लगातार हमले होते रहते हैं, चाहे सार्वजनिक रूप से हो या अकेले में। उसके संघर्ष और भावनाओं से भरे महाकाव्य समाज की उपेक्षा का शिकार होते हैं। वह असफलता की धूल से ढका हुआ महसूस करता है, क्योंकि सफलता आमतौर पर छल और धन के ज़रिए प्राप्त होती है, जबकि उसने जीवन को सीधे और ईमानदारी से जिया है।

फिर भी, कवि अपनी स्थिति से असंतुष्ट है और दुनिया को बेहतर बनाने की चाह रखता है। उसे लगता है कि समाज की गंदगी को साफ़ करने के लिए उसे खुद एक सफाईकर्मी (मेहतर) बनना चाहिए, लेकिन वह ऐसा करने में असमर्थ है। उसके भीतर की आवाज़ कहती है कि कोई भी काम छोटा नहीं होता, बशर्ते कि इंसान सच्चा हो, लेकिन फिर भी वह खुद को उस दिशा में ले जाने में असफल रहता है।

कवि समाज की भौतिकवादी दुनिया से बाहर की वास्तविकताओं पर ध्यान देता है, जहाँ भूख, गरीबी और पीड़ा व्याप्त है। उसकी बच्ची मुनिया भूख से पीड़ित है, और समाज के वंचित लोगों की तकलीफ़ें हर जगह फैली हुई हैं। उसके लिए यही पीड़ा ही वास्तविक सत्य है, बाकी सब मिथ्या और भ्रम मात्र है।

अंत में, कवि खुद को समाज में एक हाशिए पर पड़ा व्यक्ति मानता है। वह खुद को कनफटा (तिरस्कृत) और नीचा समझता है, जो महंगी कारों के नीचे लेटकर उनके पुर्जे सुधारता है और अमीरों की आज्ञाएँ मानने को मजबूर है। यह कविता समाज में आर्थिक और सामाजिक असमानता पर एक गहरी टिप्पणी प्रस्तुत करती है।

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