छत्तिसगढ़ी भाषा का विकास एवं इतिहास

chhattisgarhi bhasha ka vikas evam itihas

छत्तिसगढ़ी भाषा का विकास एवं इतिहास

  • आज हम जिस भाषा को हिन्दी के रूप में जानते हैं, वह आधुनिक आर्य भाषाओं में से एक है। आर्य भाषा का प्राचीनतम रूप वैदिक संस्कृत है, जो साहित्य की परिनिष्ठित भाषा थी। वैदिक संस्कृत में ही वेद, संहिताएं एवं उपनिषदों–वेदांत का सृजन हुआ है। संस्कृत को देवों की भाषा भी कहा गया है।
  • वैदिक भाषा के साथ–साथ ही प्रचलित बोलचाल की संस्कृत को लौकिक संस्कृत कहा जाता था।
  • लौकिक संस्कृत परिवर्तित होते–होते 500 ई.पू. में पालि कहलायी। महात्मा बुद्ध ने पालि में ही अपने उपदेशों का प्रचार–प्रसार किया।
  • पहले ईसा तक आते–आते पालि से ‘प्राकृत’ भाषा का विकास हुआ।
  • कालांतर में प्राकृत भाषाओं के क्षेत्रीय रूपों से अपभ्रंश भाषाएं प्रतिपादित हुईं। इनका समय 500 ई. से 1000 ई.तक माना जाता है।
  • अनुमानतः 1000 ई. के आसपास अपभ्रंश के विभिन्न क्षेत्रीय रूपों से आधुनिक आर्य भाषाओं जैसे– हिन्दी, उड़िया, बांग्ला, गुजराती, असमिया, मैथिली, पंजाबी, सिंधी, मराठी की उत्पत्ति हुई है।
  • भाषा शास्त्रियों के अनुसार छत्तीसगढ़ी; पूर्वी हिन्दी की एक शाखा है। ‘अपभ्रंश’ से ‘अभ्रंशधी’ एवं ‘अभ्रंशधी’ से पूर्वी हिन्दी की उपभाषाओं अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी का विकास हुआ है।
  • मागधी और ‘शौरसेनी’ के बीच का क्षेत्र ‘अर्धमागधी’ का है।

राजभाषा छत्तीसगढ़ी का विकास क्रम

वैदिक संस्कृत

लौकिक संस्कृत

पालि

प्राकृत

अपभ्रंश

अर्धमागधी

पूर्वी हिन्दी
↙ ↓ ↘
बघेली छत्तीसगढ़ी अवधी


छत्तिसगढ़ी भाषा ब्लॉग पोस्ट(CGPSC)

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