हम सीखेंगे :
- ✨ अलंकार – Alankar की परिभाषा, भेद, उपभेद और उदाहरण – Alankar in Detail
- 🟠 1. शब्दालंकार (Shabd Alankar)
- 🔵 2. अर्थालंकार (Arth Alankar)
- 🌟 अर्थालंकार – परिभाषा, भेद और उदाहरण सहित संपूर्ण विवरण
- 🧾 अर्थालंकार के प्रमुख भेद
- 🌿 उपमा अलंकार
- 🎭 रूपक अलंकार
- 🔮 उत्प्रेक्षा अलंकार
- 🪞 दृष्टान्त अलंकार
- ❓ संदेह अलंकार
- 🔥 अतिशयोक्ति अलंकार
- 🌀 उपमेयोपमा अलंकार
- 🔁 प्रतीप अलंकार
- 🔗 अनन्वय अलंकार
- 🧠 भ्रांतिमान अलंकार
- 🕯️ दीपक अलंकार
- 🕵️♂️ अपहृति अलंकार
- 📈 व्यतिरेक अलंकार
- 💡 विभावना अलंकार
- 🎯 विशेषोक्ति अलंकार
- 🔄 अर्थान्तरन्यास अलंकार
- 📚 उल्लेख अलंकार
- ⚖️ विरोधाभाष अलंकार
- 🧩 असंगति अलंकार
- 🧍♂️ मानवीकरण अलंकार
- 👤 अन्योक्ति अलंकार
- 🧭 काव्यलिंग अलंकार
- 🧘 स्वभावोक्ति अलंकार
- 🔗 कारणमाला अलंकार
- 🔄 पर्याय अलंकार
- 🪷 समासोक्ति अलंकार
- 🌈 उभयालंकार
- 🧪 अलंकार युग्म में अंतर
- Quick Revision (तीव्र दोहराव नोट्स)
- 📚 अर्थालंकार के भेद
- 💎 उभयालंकार
- सीखते रहें
✨ अलंकार – Alankar की परिभाषा, भेद, उपभेद और उदाहरण – Alankar in Detail
📖 अलंकार: Alankar in Hindi
🔸 परिभाषा:
Alankar अलंकार का शाब्दिक अर्थ होता है ‘आभूषण’, जैसे स्त्री की शोभा आभूषण से बढ़ती है, वैसे ही काव्य की शोभा अलंकार से होती है।
“अलंकरोति इति अलंकारः” – जो अलंकृत करे, वही अलंकार।
📝 “कविता चाहे कितनी ही सुंदर हो, बिना अलंकार के उसकी शोभा अधूरी मानी जाती है।”
आचार्य केशवदास जी कहते हैं : “भूषण बिन न विराजई, कविता वनिता मित्त॥”
📌 सरल शब्दों में:
“शब्द और अर्थ के माध्यम से काव्य को सजाने-संवारने वाला तत्व अलंकार कहलाता है।” अलंकार काव्य के आभूषण (गहने) हैं
🧩 अलंकार के भेद – Alankar Ke Bhed
🔹 अलंकार को मुख्यतः तीन श्रेणियों में बाँटा गया है:
📚 पाठ्यक्रम में शब्दालंकार और अर्थालंकार पढ़ाए जाते हैं। परंतु यहाँ आपको उभयालंकार पर भी विस्तृत जानकारी मिलेगी
🟠 1. शब्दालंकार (Shabd Alankar)
🔸 जब किसी शब्द के चयन और पुनरावृत्ति से चमत्कार उत्पन्न हो – और वही प्रभाव समानार्थी शब्दों से न बन पाए – तो उसे शब्दालंकार कहते हैं।
✴️ शब्दालंकार के प्रकार:
- 🔹 अनुप्रास अलंकार
- 🔹 यमक अलंकार
- 🔹 पुनरुक्ति अलंकार
- 🔹 विप्सा अलंकार
- 🔹 वक्रोक्ति अलंकार
- 🔹 श्लेष अलंकार
🟣 अनुप्रास अलंकार
🔸 किसी वर्ण की बार-बार आवृत्ति से उत्पन्न श्रव्य-सौंदर्य।
📝 उदाहरण:
चारु चन्द्र की चंचल किरणें खेल रही थीं जल थल में।
(यहाँ “च” वर्ण की आवृत्ति हो रही है।)
🔽 अनुप्रास के उपभेद:
- 💠 छेकानुप्रास: स्वरुप व क्रम से वर्ण आवृत्ति
👉 रीझि रीझि रहसि रहसि हँसि हँसि उठै। - 💠 वृत्यानुप्रास: एक ही वर्ण की आवृत्ति
👉 चामर-सी, चन्दन-सी, चाँदनी चमेली चारु… - 💠 लाटानुप्रास: शब्द या वाक्यांश की पुनरावृत्ति
👉 तेगबहादुर, हाँ, वे ही थे… - 💠 अन्त्यानुप्रास: पंक्तियों के अंत में समान ध्वनि
👉 लगा दी किसने आकर आग / कहाँ था तू संशय के नाग? - 💠 श्रुत्यानुप्रास: कानों को मधुर लगने वाली ध्वनि
👉 दिनान्त था, थे दीननाथ डुबते…
🟣 यमक अलंकार
🔸 जब एक ही शब्द बार-बार आये, लेकिन हर बार उसका अर्थ अलग हो।
📝 उदाहरण:
कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय।
(पहला “कनक” = सोना, दूसरा = धतूरा)

🟣 पुनरुक्ति अलंकार
🔸 जब कोई शब्द दो बार दोहराया जाए और उसका अर्थ एक ही हो।
📝 उदाहरण:
ठुमुकि-ठुमुकि रुनझुनि धुनि सुनि, चलत नवीन चपल छबि छाजन।
जनु लघु तरनि उदित रवि समान, हर्षत हृदय दधि-भोजन।

🟣 विप्सा अलंकार
🔸 विशेष भावों को प्रकट करने के लिए शब्दों की प्रभावशाली पुनरावृत्ति।
📝 उदाहरण:
मोहि-मोहि मोहन को मन भयो राधामय।
🟣 वक्रोक्ति अलंकार
🔸 जब श्रोता, वक्ता की बात का अर्थ अलग निकालता है।
➤ उपभेद:
- 🎭 काकु वक्रोक्ति: आवाज़ के उतार-चढ़ाव से अर्थ बदलना
👉 मैं सुकुमारि नाथ बन जोगू। - 🎭 श्लेष वक्रोक्ति: श्लेष के कारण अर्थ-भिन्नता
👉 को तुम हौ इत आये कहाँ घनश्याम…
🟣 श्लेष अलंकार
🔸 जहाँ एक ही शब्द से एक साथ अनेक अर्थ निकलें।
📝 उदाहरण:
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरे, मोती, मानुष, चून।।
(यहाँ “पानी” – जल, प्रतिष्ठा, जीवन तीनों अर्थ देता है।)

🔵 2. अर्थालंकार (Arth Alankar)
🔸 जब शब्दों के अर्थ से चमत्कार या सौंदर्य उत्पन्न हो – तो वह अर्थालंकार कहलाता है।
शब्द की ध्वनि नहीं, अर्थ की विलक्षणता ही सौंदर्य उत्पन्न करे।
🌟 अर्थालंकार – परिभाषा, भेद और उदाहरण सहित संपूर्ण विवरण
📘 परिभाषा
👉 जहाँ अर्थ के माध्यम से काव्य में चमत्कार उत्पन्न होता है, वहाँ अर्थालंकार होता है।
🧾 अर्थालंकार के प्रमुख भेद
- उपमा अलंकार
- रूपक अलंकार
- उत्प्रेक्षा अलंकार
- दृष्टान्त अलंकार
- संदेह अलंकार
- अतिशयोक्ति अलंकार
- उपमेयोपमा अलंकार
- प्रतीप अलंकार
- अनन्वय अलंकार
- भ्रांतिमान अलंकार
- दीपक अलंकार
- अपहृति अलंकार
- व्यतिरेक अलंकार
- विभावना अलंकार
- विशेषोक्ति अलंकार
- अर्थान्तरन्यास अलंकार
- उल्लेख अलंकार
- विरोधाभाष अलंकार
- असंगति अलंकार
- मानवीकरण अलंकार
- अन्योक्ति अलंकार
- काव्यलिंग अलंकार
- स्वभावोक्ति अलंकार
- कारणमाला अलंकार
- पर्याय अलंकार
- समासोक्ति अलंकार
🌿 उपमा अलंकार
📌 तुलना द्वारा सौंदर्य उत्पन्न करना
🔍 परिभाषा: जब किसी व्यक्ति या वस्तु की तुलना किसी दूसरी वस्तु से की जाती है, वहाँ उपमा अलंकार होता है।
🎯 उदाहरण:सागर सा गंभीर हृदय हो, गिरि सा ऊँचा हो जिसका मन।
🔧 चार अंग:
- 🟡 उपमेय
- 🟢 उपमान
- 🔵 वाचक शब्द
- 🟣 साधारण धर्म
📚 उपमा अलंकार के भेद:
- ✅ पूर्णोपमा
- ✅ लुप्तोपमा
🎭 रूपक अलंकार
📌 जहाँ उपमेय और उपमान में भेद न हो
🎯 उदाहरण:उदित उदयगिरि मंच पर, रघुवर बाल पतंग।
📚 भेद:
- 🔹 सम रूपक
- 🔹 अधिक रूपक
- 🔹 न्यून रूपक
🔮 उत्प्रेक्षा अलंकार
📌 जहाँ कल्पना प्रमुख हो
🎯 उदाहरण:सखि सोहत गोपाल के, उर गुंजन की माल।
📚 भेद:
- 💠 वस्तुप्रेक्षा
- 💠 हेतुप्रेक्षा
- 💠 फलोत्प्रेक्षा
🪞 दृष्टान्त अलंकार
📌 बिम्ब-प्रतिबिम्ब की समानता पर आधारित
🎯 उदाहरण:एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं।
❓ संदेह अलंकार
📌 जहाँ वस्तु की पहचान में संशय हो
🎯 उदाहरण:यह काया है या शेष की छाया?
🔥 अतिशयोक्ति अलंकार
📌 सीमा से अधिक बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन
🎯 उदाहरण:हनुमान की पूंछ में लगन न पायी आगि, सगरी लंका जल गई।
🌀 उपमेयोपमा अलंकार
📌 उपमेय और उपमान दोनों की तुलना एक-दूसरे से
🎯 उदाहरण:तौ मुख सोहत है ससि सो, अरु सोहत है ससि तो मुख जैसो।
🔁 प्रतीप अलंकार
📌 उल्टी उपमा का प्रयोग
🎯 उदाहरण:नेत्र के समान कमल है।
🔗 अनन्वय अलंकार
📌 जहाँ उपमेय के समान कोई और न हो
🎯 उदाहरण:भारत के सम भारत है।
🧠 भ्रांतिमान अलंकार
📌 जहाँ भ्रम उत्पन्न हो
🎯 उदाहरण:महावर देने को नाइन बैठी आय।
🕯️ दीपक अलंकार
📌 समान गुणों की एक साथ उपस्थिति
🎯 उदाहरण:अरविंदन में इंदिरा, सुन्दरि नैनन लाज।
🕵️♂️ अपहृति अलंकार
📌 सत्य को छिपाकर असत्य को स्थापित करना
🎯 उदाहरण:सुनहु नाथ रघुवीर कृपाला, बन्धु न होय मोर यह काला।
📈 व्यतिरेक अलंकार
📌 जब उपमेय को उपमान से श्रेष्ठ दिखाया जाए
🎯 उदाहरण:मुख की समानता चंद्रमा से कैसे दूँ?
💡 विभावना अलंकार
📌 कारण के बिना कार्य होना
🎯 उदाहरण:बिनु पग चलै, सुनै बिनु काना।
🎯 विशेषोक्ति अलंकार
📌 सभी कारण होने पर भी कार्य न हो
🎯 उदाहरण:नीर भरे नितप्रति रहें, तऊ न प्यास बुझाई।
🔄 अर्थान्तरन्यास अलंकार
📌 एक कथन से दूसरे का समर्थन
🎯 उदाहरण:कहत धतूरे सों कनक, गहनो गढ़ो न जाए।
📚 उल्लेख अलंकार
📌 एक वस्तु को अनेक रूप में प्रस्तुत करना
🎯 उदाहरण:विन्दु में थीं तुम सिन्धु अनन्त।
⚖️ विरोधाभाष अलंकार
📌 विरोधाभास की अनुभूति
🎯 उदाहरण:आग हूँ जिससे ढुलकते बिंदु हिमजल के।
🧩 असंगति अलंकार
📌 कार्य और कारण में असंगति
🎯 उदाहरण:ह्रदय घाव मेरे पीर रघुवीरै।
🧍♂️ मानवीकरण अलंकार
📌 जड़ वस्तुओं में मानवता का आरोप
🎯 उदाहरण:अम्बर पनघट में डुबो रही, तारा घट उषा नगरी।
👤 अन्योक्ति अलंकार
📌 एक बात के माध्यम से दूसरी बात कहना
🎯 उदाहरण:फूलों के आस-पास रहते हैं, फिर भी काँटे उदास रहते हैं।
🧭 काव्यलिंग अलंकार
📌 युक्तियुक्त बातों का समर्थन
🎯 उदाहरण:कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय।
🧘 स्वभावोक्ति अलंकार
📌 किसी वस्तु का स्वाभाविक वर्णन
🎯 उदाहरण:
“सीस मुकुट कटी काछनी, कर मुरली उर माल।” (श्रीकृष्ण का स्वाभाविक स्वरूप वर्णन)
“कमल दिवस में खिलता है और रात्रि में मुरझा जाता है।”
🔗 कारणमाला अलंकार
📌 परिभाषा : जब किसी एक परिणाम या घटना को कारणों की श्रृंखला (एक के बाद एक कारण) के रूप में प्रस्तुत किया जाए, तो कारणमाला अलंकार होता है।
🎯 उदाहरण :
- “वर्षा हुई, इसलिए फसल लहलहा उठी।
फसल लहराई, इसलिए किसान प्रसन्न हुआ।
किसान प्रसन्न हुआ, इसलिए गाँव में उत्सव छा गया।” - “राजा धर्म करता है → प्रजा सुखी होती है → सुख से धन बढ़ता है → धन से दान होता है।”
🔄 पर्याय अलंकार
📌 परिभाषा : जब किसी एक ही वस्तु अथवा भाव को अनेक पर्यायवाची शब्दों के प्रयोग द्वारा व्यक्त किया जाए, तो पर्याय अलंकार होता है।
🎯 उदाहरण :
- “राम रघुनाथ, दशरथनंदन, कौसल्यासुत, रघुकुल-नायक।”
- “सूर्य, भानु, दिवाकर, दिनकर, रवि, मित्र।”
🪷 समासोक्ति अलंकार
📌 परिभाषा : जब किसी वस्तु या भाव का संक्षिप्त रूप में, परन्तु गहन अर्थ सहित वर्णन किया जाता है, वहाँ समासोक्ति अलंकार होता है।
🎯 उदाहरण :
- “सिर पर बर्फ, मुख पर जल, भीतर आग सरीखा मन।”
(यहाँ बूढ़े व्यक्ति का स्वरूप संक्षेप में) - “जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि।”
🌈 उभयालंकार
📌 शब्द और अर्थ दोनों पर आधारित अलंकार
🎯 उदाहरण:कजरारी अंखियन में कजरारी न लखाय।
1️⃣ संसृष्टि उभयालंकार
📌 परिभाषा :
जब एक ही काव्यांश में अनेक अलंकार (शब्दालंकार और/या अर्थालंकार) मौजूद हों और उन्हें अलग-अलग पहचानना सहज संभव हो, तो वहाँ संसृष्टि अलंकार होता है।
🎯 उदाहरण :
“बाल ब्याल बक बांकुरे, कपोलन कहि न जाए।
सूर स्याम सुंदर बरन, लजि तारे अरुनाय॥” (सूरदास)
👉 इसमें अनुप्रास (बाल, ब्याल, बक, बांकुरे में ध्वन्यात्मकता) और रूपक (श्याम को सुंदर चंद्र से तुलना) दोनों साफ दिख रहे हैं।
2️⃣ संकर उभयालंकार
📌 परिभाषा :
जब एक ही काव्यांश में अनेक अलंकार इस प्रकार घुल-मिल जाते हैं कि उन्हें अलग करना कठिन हो, तो वहाँ संकर अलंकार होता है।
🎯 उदाहरण :
“सिंधु सघन घन घेरि घन, घेरि घेरि घेरत हैं।
गर्जन घेरि घन घेरि, बरसन घेरि बरसत हैं॥” (भूषण)
👉 यहाँ अनुप्रास, यमक और उत्प्रेक्षा इस तरह मिश्रित हैं कि अलग-अलग पहचान करना कठिन है।
✅ अंतर (Difference) :
- संसृष्टि उभयालंकार → अलग-अलग अलंकार पहचान में आते हैं।
- संकर उभयालंकार → अलंकार इतने घुल जाते हैं कि अलग पहचानना कठिन हो जाता है।
🧪 अलंकार युग्म में अंतर
📌 मुख्य अंतर:
- ✳️ यमक और श्लेष में अंतर
- ✳️ उपमा और रूपक में अंतर
- ✳️ उपमा और उत्प्रेक्षा में अंतर
- ✳️ संदेह और भ्रांतिमान में अंतर
🆚 यमक और श्लेष अलंकार में अंतर : तुलना सारणी
| 🔸 विशेषता | 🟠 यमक अलंकार | 🔵 श्लेष अलंकार |
|---|---|---|
| शब्द प्रयोग | शब्द कई बार प्रयुक्त | शब्द एक बार प्रयुक्त |
| अर्थ | हर बार अलग अर्थ | एक साथ अनेक अर्थ |
| प्रभाव | ध्वनि की पुनरावृत्ति से सौंदर्य | शब्द की बहु-अर्थता से सौंदर्य |
| उदाहरण | उदाहरण: नगन जड़ाती थीं वे, नगन जड़ाती हैं। 🔹 पहले “नगन जड़ाती” = वस्त्रों में नग जड़वाना 🔹 दूसरे “नगन जड़ाती” = वस्त्र विहीन होकर काँपना अन्य उदाहरण: कनक-कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय 🔹 पहला “कनक” = सोना 🔹 दूसरा “कनक” = धतूरा | उदाहरण: अजौं तयोना ही रह्यो, श्रुति सेवत इक अंग 🔹 “श्रुति” = कान और वेद — दोनों अर्थ संभव हैं अन्य उदाहरण: विमलाम्बरा रुजनी-वधू अभिसारिका सी जा रही। 🔹 “विमलाम्बरा” = स्वच्छ आकाश वाली और स्वच्छ वस्त्रों वाली |
🆚 अनुप्रास और यमक अलंकार में अंतर : तुलना सारणी
| 🔸 विशेषता | 🟠 अनुप्रास अलंकार | 🔵 यमक अलंकार |
|---|---|---|
| आवृत्ति | वर्ण की आवृत्ति | शब्द की आवृत्ति |
| मुख्य प्रभाव | ध्वनि सौंदर्य | अर्थ भिन्नता से सौंदर्य |
| अर्थ का संबंध | कोई अर्थ नियम नहीं | प्रत्येक प्रयोग का भिन्न अर्थ |
| उदाहरण | उदाहरण: तरनि-तनूजा तट तमाल तरूवर बहु छाये। 🔹 इसमें ‘त’ वर्ण की आवृत्ति बार-बार हुई है। अन्य उदाहरण: बंदऊँ गुरुपद पदुम परागा। सुरुचि सुवास सरस अनुरागा। | उदाहरण: माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर, कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर 🔹 “मनका” का एक अर्थ – माला का मोती 🔹 “मनका” का दूसरा अर्थ – मन की भावनाएँ अन्य उदाहरण: तीन बेर खाती थी, वह तीन बेर खाती है। 🔹 पहले “बेर” = संख्या (तीन बार खाना) 🔹 दूसरे “बेर” = एक फल |
🆚 उपमा और रूपक अलंकार में अंतर : तुलना सारणी
| 🔸 विशेषता | 🟠 उपमा अलंकार | 🔵 रूपक अलंकार |
|---|---|---|
| सम्बंध | उपमेय और उपमान के बीच समानता | उपमेय पर उपमान का अभेद आरोप |
| शब्द प्रयोग | जैसे, सा, समान, मानो आदि | सीधा अभेद संबंध, उपमान को उपमेय बना देना |
| प्रभाव | समानता का संकेत | पूर्ण तादात्म्य (अभेद) |
| उदाहरण | उदाहरण: हरि पद कोमल कमल से 🔹 ईश्वर के चरणों की समानता “कमल” की कोमलता से बताई गई है। | उदाहरण: मन मधुकर पन कै तुलसी रघुपति पद कमल बसैहौं। 🔹 यहाँ मन पर “भ्रमर” का और चरणों पर “कमल” का अभेद रूप में आरोप किया गया है। |
🆚 उपमा और उत्प्रेक्षा अलंकार में अंतर : तुलना सारणी
| 🔸 विशेषता | 🟠 उपमा अलंकार | 🔵 उत्प्रेक्षा अलंकार |
|---|---|---|
| स्वरूप | समानता को स्पष्ट रूप से दर्शाया गया | उपमान की संभावना या कल्पना की गई |
| संकेत शब्द | जैसे, सा, समान | मानो, जैसे, प्रतीत होता है |
| मुख्य अंतर | तुलना की जाती है | कल्पना की जाती है |
| उदाहरण | उदाहरण: फूलों सा चेहरा तेरा 🔹 चेहरा फूलों के समान कोमल है, इसलिए तुलना की गई है। | उदाहरण: मुख मानो चन्द्रमा है। 🔹 मुख की कल्पना चन्द्रमा के समान की गई है (सीधा नहीं कहा कि मुख चन्द्रमा है)। |
🆚 संदेह और भ्रांतिमान अलंकार में अंतर : तुलना सारणी
| 🔸 विशेषता | 🟠 संदेह अलंकार | 🔵 भ्रांतिमान अलंकार |
|---|---|---|
| मुख्य आधार | समानता के कारण अनिश्चितता | समानता के कारण भ्रम |
| स्थिति | क्या है, यह स्पष्ट नहीं | जो है, उसे कुछ और समझ लिया |
| प्रभाव | दो संभावनाओं में झूलता भाव | स्पष्ट भ्रम (गलत निष्कर्ष) |
| उदाहरण | उदाहरण: कैघों व्योम बीथिका भरे हैं भूरि धूमकेतु वीर रस वीर तरवारि सी उघारी है। 🔹 जलती हुई पूँछ से धुआँ देखकर ऐसा लगता है मानो 👉 आकाश में धूमकेतु हैं 👉 या कोई वीर तलवार निकाल रहा है (अनिश्चितता बनी रहती है) | उदाहरण: नाक का मोती अधर की कान्ति से बीज दाड़िम का समझकर भ्रान्ति से। 🔹 तोता नथ का मोती देखकर उसे अनार का बीज समझ बैठा। 🔹 उसे लगा कि यह तोता किसी दूसरे तोते की चोंच में अनार का दाना है। |
Quick Revision (तीव्र दोहराव नोट्स)
📚 अर्थालंकार के भेद
🌸 उपमा अलंकार
- परिभाषा: किसी व्यक्ति या वस्तु की तुलना किसी अन्य से।
- उदाहरण: सागर-सा गंभीर हृदय हो, गिरी-सा ऊँचा हो जिसका मन।
- अंग: उपमेय, उपमान, वाचक शब्द, साधारण धर्म।
- भेद:
- पूर्णोपमा (सभी अंग हों)
- लुप्तोपमा (कुछ अंग लुप्त हों)
🪞 रूपक अलंकार
- परिभाषा: उपमेय और उपमान के भेद का लोप।
- उदाहरण: उदित उदय गिरी मंच पर, रघुवर बाल पतंग।
🌠 उत्प्रेक्षा अलंकार
- परिभाषा: अप्रस्तुत को प्रस्तुत मान लेना।
- उदाहरण: सखि सोहत गोपाल के, उर गुंजन की माल।
🪷 दृष्टान्त अलंकार
- परिभाषा: दो वाक्यों में बिंब-प्रतिबिंब भाव हो।
- उदाहरण: एक म्यान में दो तलवारें कभी नहीं रह सकतीं।
❓ संदेह अलंकार
- परिभाषा: उपमेय और उपमान की समानता से भ्रम।
- उदाहरण: यह काया है या शेष उसी की छाया।
🔥 अतिशयोक्ति अलंकार
- परिभाषा: वर्णन में मर्यादा का उल्लंघन।
- उदाहरण: हनुमान की पूँछ में लगन न पायी आगि। सगरी लंका जल गई, गये निसाचर भागि।।
🔄 उपमेयोपमा अलंकार
- परिभाषा: उपमेय और उपमान को परस्पर उपमा देना।
- उदाहरण: तौ मुख सोहत है ससि सो, अरु सोहत है ससि तो मुख जैसो।
🔁 प्रतीप अलंकार
- परिभाषा: उपमेय को उपमान के समान न कहकर उलट कर उपमान को उपमेय कहना।
- उदाहरण: नेत्र के समान कमल है।
🚫 अनन्वय अलंकार
- परिभाषा: जब उपमेय की समता में कोई उपमान न आए।
- उदाहरण: भारत के सम भारत है।
😵 भ्रांतिमान अलंकार
- परिभाषा: उपमेय में उपमान का भ्रम।
- उदाहरण: पायें महावर देन को नाईन बैठी आय। फिरि-फिरि जानि महावरी, एड़ी भीड़त जाये।
🕯️ दीपक अलंकार
- परिभाषा: एक ही धर्म को प्रस्तुत और अप्रस्तुत दोनों पर लागू करना।
- उदाहरण: चंचल निशि उदवस रहें, करत प्रात वसिराज।
🧩 अपहृति अलंकार
- परिभाषा: सत्य को छिपाकर झूठी वस्तु की स्थापना।
- उदाहरण: सुनहु नाथ रघुवीर कृपाला, बन्धु न होय मोर यह काला।
⚖️ व्यतिरेक अलंकार
- परिभाषा: उपमान की अपेक्षा उपमेय की श्रेष्ठता दिखाना।
- उदाहरण: मुख की समानता चन्द्रमा से कैसे दूँ? चाँद कलंकी, वह निकलंकू।
💫 विभावना अलंकार
- परिभाषा: बिना कारण के भी कार्य सिद्ध होना।
- उदाहरण: बिनु पग चलै, सुनै बिनु काना। कर बिनु कर्म करै विधि नाना।
✍️ विशेषोक्ति अलंकार
- परिभाषा: सभी कारण उपस्थित होने पर भी कार्य न होना।
- उदाहरण: नीर भरे नित-प्रति रहें, तऊ न प्यास बुझाई।
🔍 अर्थान्तरन्यास अलंकार
- परिभाषा: सामान्य से विशेष या विशेष से सामान्य कथन का समर्थन।
- उदाहरण: बड़े न हूजे गुनन बिनु, बिरद बडाई पाए।
📌 उल्लेख अलंकार
- परिभाषा: एक ही वस्तु को कई रूपों में बताना।
- उदाहरण: विन्दु में थीं तुम सिन्धु अनन्त, एक सुर में समस्त संगीत।
♨️ विरोधाभाष अलंकार
- परिभाषा: विरोध न होते हुए भी विरोध का आभास।
- उदाहरण: आग हूँ जिससे ढुलकते बिंदु हिमजल के।
⛔ असंगति अलंकार
- परिभाषा: कार्य और कारण में असंगति।
- उदाहरण: ह्रदय घाव मेरे पीर रघुवीरै।
👤 मानवीकरण अलंकार
- परिभाषा: निर्जीव वस्तुओं को मानव रूप देना।
- उदाहरण: बीती विभावरी जागरी, अम्बर पनघट में डुबो रही तारा घट उषा नगरी।
🗣️ अन्योक्ति अलंकार
- परिभाषा: किसी उक्ति द्वारा किसी अन्य को कहना।
- उदाहरण: फूलों के आस-पास रहते हैं, फिर भी काँटे उदास रहते हैं।
🧠 काव्यलिंग अलंकार
- परिभाषा: किसी बात के समर्थन में युक्ति देना।
- उदाहरण: कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय। उहि खाय बौरात नर, इहि पाए बौराए।।
🧘 स्वभावोक्ति अलंकार
- परिभाषा: किसी वस्तु का स्वाभाविक वर्णन।
- उदाहरण: सीस मुकुट कटी काछनी, कर मुरली उर माल।
🔗 कारणमाला अलंकार
- परिभाषा: कार्य और कारण की श्रृंखला प्रस्तुत करना।
- उदाहरण: वर्षा हुई → फसल लहलहाई → किसान प्रसन्न हुआ → गाँव में उत्सव छा गया।
♻️ पर्याय अलंकार
- परिभाषा: एक ही वस्तु को पर्यायवाची शब्दों में कहना।
- उदाहरण: राम, रघुनाथ, दशरथनंदन, कौसल्यासुत।
📖 समासोक्ति अलंकार
- परिभाषा: संक्षिप्त शब्दों में गहन अर्थ प्रकट करना।
- उदाहरण: जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि।
💎 उभयालंकार
📌 परिभाषा: जिन अलंकारों में शब्द और अर्थ दोनों की शोभा मिलती है, उन्हें उभयालंकार कहते हैं।
🧷 उभयालंकार के भेद
- 🧬 संसृष्टि उभयालंकार: अनेक अलंकारों की पृथक पहचान (तिल-तंडुल न्याय)।
- उदाहरण:
भूपति भवनु सुभायँ सुहावा। सुरपति सदनु न परतर पावा।।
(प्रतीप और उत्प्रेक्षा की संसृष्टि)
- उदाहरण:
- 🧪 संकर उभयालंकार: अनेक अलंकारों का मिश्रण, जिन्हें अलग करना कठिन हो (नीर-क्षीर न्याय)।
- उदाहरण:
सठ सुधरहिं सत संगति पाई। पारस-परस कुधातु सुहाई।।
(अनुप्रास और यमक का संकर)
- उदाहरण:


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