विषयसूची
- भाषा परिवार के आधार पर वर्गिकरण
- छत्तीसगढ़ी विभाषाओं का क्षेत्रीय अधार पर वर्गीकरण
- भगोलिक आधार पर छत्तीसगढ़ी का स्वरूप
- 1961ई. की जनणना के अनुसार छत्तीसगढ़ की मातृभाषाएँ
- छत्तीसगढ़ी का परिनिष्ठित रूप :
- CGPSC के अबया महत्वपूर्ण नोट्स :
- छत्तीसगढ़ में लगभग 93 भाषा , बोलियों का व्यवहार होता है. राज्य में सर्वाधिक छत्तीसगढ़ी एवं इसके बाद हल्बी बोली का प्रयोग होता है.
- छत्तीसगढ़ के मैदानी क्षेत्रों में मुख्यतः आर्य भाषा समूह का प्रयोग होता है . जबकि ज़्यादातर जनजातीय क्षेत्रों में मुख्यतः द्रविड़ भाषा समूह एवं मुंडा भाषा समूह की बोलियाँ प्रचलित है.
भाषा परिवार के आधार पर वर्गिकरण
- छत्तीसगढ़ की बोलियों को मुख्यतः तीन भाषा परिवारों में बांटा जाता है. ये तीन भाषा परिवार निम्न है –
- 1. मुंडा भाषा परिवार – प्राक मुंडा > प्राक दक्षिणी एवं प्राक उत्तरी
- अ. प्राक दक्षिणी मुंडा
- प्राक बस्तर मुंडा > गदबा
- प्राक मध्य मुंडा > खड़िया
- ब . प्राक उत्तरी मुंडा > कोरकू , मवासी , निहाली ,
- प्राक खेरवारी > विदहो ,
- कोरवा > नगेसिया , सांता , माझी , मझवार खैरवारी
- अ. प्राक दक्षिणी मुंडा
- 1. मुंडा भाषा परिवार – प्राक मुंडा > प्राक दक्षिणी एवं प्राक उत्तरी
- 2. द्रविड़ भाषा परिवार – प्राक द्रविड़ >दक्षिण केन्द्रीय , केन्द्रीय , उत्तरी द्रविड़
- अ. दक्षिण केन्द्रीय द्रविड़ / गोड़ीं समूह > दोरली , दंडामी माड़िया , मुड़िया , अबूझमाड़िया
- ब. केन्द्रीय द्रविड़ > परजी या धुरवी ( बस्तर संभाग )
- स. उत्तरी द्रविड़ > कुडुख या उरांव (सरगुजा संभाग )
- 3. आर्य भाषा परिवार – प्राक आर्य > अर्द्धमागधी , मागधी , विजनीकृत
- अ. अर्द्धमागधी > पूर्वी हिन्दी > छत्तीसगढ़ी
- ब. मागधी > उड़िया > भतरी
- स. विजनीकृत > हल्बी( बस्तर संभाग ) , > सदरी ( सरगुजा संभाग )
छत्तीसगढ़ी विभाषाओं का क्षेत्रीय अधार पर वर्गीकरण
वर्गीकरण का आधार
- ग्रियर्सन ने बस्तरी को छत्तीसगढ़ी के वर्गीकरण में स्थान नहीं दिया है। बल्कि इसे मराठी से युक्त करते हुए छत्तीसगढ़ी , उड़िया तथा मराठी का एक मिश्रित रूप बताया है।
- छत्तीसगढ़ी के रायपुरी और बिलासपुरी रूपों की पृथकता का मूल आधार शिवनाथ नदी है, जो इन संभागों की सीमा रेखा बनाती है।
- सरगुजिया और सदरी कोरवा के विभाजन का आधार पर्वत मालाएँ है।
- बैगानी , बिंझवारी , कलंगा , भूलिया का वर्गीकरण के आधार जातिगत है।
- खल्टाही एवं बस्तरी का वर्गीकरण प्रकृतिक आधार पर किया गया है ।
ग्रियर्सन के अनुसार
- ग्रियर्सन ने भारत का भाषा सर्वेक्षण में भारतीय का सर्वोत्कृष्ठ विश्लेषण किया है। ग्रियर्सन ने हिन्दी प्रदेश को पूर्वी हिन्दी और पश्चिमी हिन्दी में विभाजित किया है तथा पूर्वी हिन्दी के अंतर्गत केवल दो बोलियाँ अवधी और छत्तीसगढ़ी को शामिल किया है।
- उन्होने छत्तीसगढ़ी का वर्गीकरण क्षेत्रीय एवं जातीय आधार पर किया है – क्षेत्रीय आधार पर – छत्तीसगढ़ी , खल्टाही , सरगुजिया
- जातीय आधार पर – सदरी , कोरवा , बैगानी , बिंझवारी , कलंगा
डा . ग्रियर्सन ने छत्तीसगढ़ी को नौ भागों में विभाजित किया है –
- बिलासपुरी छत्तीसगढ़ी
- कवर्धा छत्तीसगढ़ी
- खैरागढ़ी छत्तीसगढ़ी
- खल्टाही छत्तीसगढ़ी
- सरगुजिया छत्तीसगढ़ी
- सदरी कोरवा छत्तीसगढ़ी
- बैगानी छत्तीसगढ़ी
- बिंझवारी छत्तीसगढ़ी
- कलंगा भूलिया छत्तीसगढ़ी
डा . नरेंद्र देव वर्मा के अनुसार –
- छत्तीसगढ़ी – (अ) रायपुरी (ब ) बिलासपुरी
- खल्टाही
- लरिया
- सरगुजिया
- सदरी कोरवा
- बैगानी
- बिंझवारी
- कलंगा
- भूलिया
- बस्तरी या हल्बी
भगोलिक आधार पर छत्तीसगढ़ी का स्वरूप
- उत्तरी छत्तीसगढ़ी (भंडार छत्तीसगढ़ी)
- दक्षिण छत्तीसगढ़ी (रकसहून छत्तीसगढ़ी)
- पूर्वी छत्तीसगढ़ी (उत्ती छत्तीसगढ़ी)
- पश्चिमी छत्तीसगढ़ी (बुड़ती छत्तीसगढ़ी)
- मध्य छत्तीसगढ़ी (केंदरी छत्तीसगढ़ी)
1961ई. की जनणना के अनुसार छत्तीसगढ़ की मातृभाषाएँ
- बैगानी
- भूलिया
- बिलासपुरी
- बिंझवारी
- छत्तीसगढ़ी
- देवार
- धमदी
- गौरिया
- गोरी
- कांकेरी
- लरिया
- नागवंशी
- पंडो
- पनकी
- सतनामी
- सरगुजिया
छत्तीसगढ़ी का परिनिष्ठित रूप :
- प्राचीन काल मे श्रीपुर या सिरपुर छत्तीसगढ़ की राजधानी थी , इसीलिए छत्तीसगढ़ी का परिनिष्ठित स्वरूप रायपुर की जनभाषा थी।
- मध्यकाल में रतनपुर छत्तीसगढ़ की प्रतिष्ठा का केंद्र बना , इसीलिए रतनपुर की बोली अर्थात बिलासपुरी परिनिष्ठित बनी।
- आधुनिक युग में बिलासपुर की अपेक्षा रायपुर की प्रमुखता के कारण रायपुरी ही परिनिष्ठित हो चली है।
बोलियों का परिचय :
- मध्य छत्तीसगढ़ी का मानक रूप माना जा सकता है। यह मध्य छत्तीसगढ़ अर्थात राजनान्दगाँव , दुर्ग , रायपुर , बिलासपुर , जांजगीर-चांपा , बलौदाबाजार , धमतरी क्षेत्रों में बोली जाती है।
सरगुजिया
- यह कोरिया , सरगुजा ,कोरिया ,उदयपुर क्षेत्र में बोली जाती है। छोटा नागपुर के समीप होने के कारण इस पर नगपुरिया प्रभाव है। जो भोजपुरी का ही एक रूप बतायी गयी है।
खल्टाही
- छत्तीसगढ़ की पश्चिमी सीमा जो विदर्भ तथा मांडला क्षेत्र से लगी हुई है, में खल्टाही बोलीं का प्रयोग होता है। इस पर बुंदेलखंडी का प्रभाव है।
- खल्टाही शब्द की व्युत्पत्ति खल्वटिका से हुई है जो खल्लारी का मूल संस्कृत नाम है। यह बोली बालाघाट जिले के पूर्वी भाग और रायगढ़ जिले के कुछ हिस्से में बोली जाती है।
- छत्तीसगढ़ी में खल्टाही शब्द का अर्थ है – नीचे ।
लरिया
- लरिया छत्तीसगढ़ के पूर्वी सीमावर्ती क्षेत्र रायगढ़ , गरियाबंद , महासमुंद एवं रायपुर में बोली जाती है। लरिया पर उड़िया का प्रभाव देखा जा सकता है। ग्रियर्सन ने लरिया को छत्तीसगढ़ी का ही पर्यायवाची माना है।
सदरी कोरवा
- सदरी कोरवा जशपुर की कोरवा जाति के लोगों की बोली है। सरगुजा , मिर्जापुर के सोनपुर क्षेत्र तथा बिलासपुर और रायगढ़ के उत्तरवर्ती क्षेत्रों में रहने वाले कोरवा इसी बोलीं का प्रयोग करते है। यह बोलीं सरगुजिया से पर्याप्त मिलती है। इस पर भोजपुरी का भी प्रभाव है।
बैगानी
- इसका प्रयोग मुख्यतः बैगा जनजाति के लोग करते है , इसलिए इसे बैगानी कहा जाता है। यह पेंड्रा ,कवर्धा , मुंगेली क्षेत्र में बोली जाति है। बैगानी पर सीमावर्ती गोंडी और बुन्देली बोली का प्रभाव है।
- इसमें गोंडी बोली के शब्दों का व्यापक प्रचलन है।
बिंझवारी
- रायपुर , सारंगढ़ के कुछ हिस्से में बिंझवारी बोली जाती है। इस बोली पर उड़िया भाषा का प्रभाव है।
कलंगा
- कलंगा बोली उड़ीसा के सीमवर्ती इलाके में बोली जाति है तथा इस पर थोड़ा सा उड़िया का प्रभाव पड़ा है।
भूलिया
- छत्तीसगढ़ की यह बोली प्रमुखतया सोनपुर के इलाकों में बोली जाती है। कलंगा और भूलिया दोनों उड़िया लिपि में लिखी जाती है और भूलिया पर उड़िया भाषा का अधिक प्रभाव है।
परजी
- बस्तर तथा संलग्न क्षेत्र उड़ीसा के परजा या धुरवा जनजाति की बोली को परजी या धुरवी कहा जाता है। इसका प्रयोग जगदलपुर ,सुकमा , कोणटा तहसीलों के सीमांचलों तथा दंतेवाड़ा में होता है।
बस्तरी या हल्बी
- हल्बी इंडो आर्य भाषा समूह की बोली है, यह बस्तर की हल्बी जनजाति की बोलीं है। बस्तर में प्रचलित होने के कारण इसे बस्तरी भी कहा जाता है। इस पर मराठी का प्रभाव है।
- ग्रियर्सन ने हल्बी या बस्तरी को मराठी का एक रूप माना है।
भतरी
- भतरी पर उड़िया और हल्बी प्रभाव है।
गोड़ी समूह
- गोड़ी द्रविड़ भाषा समूह की बोली है एवं छत्तीसगढ़ में यह जंजातियों द्वारा बोली जाने वाली सर्वप्रमुख बोली है।
दोरली
- दोरली का व्यवहार बस्तर ,बीजापुर जिले की दक्षिणी -पूर्वी सीमा पर होती है। यह गोड़ी की एक बोली है किन्तु इस पर तेलुगू का अधिक प्रभाव है।
अबूझमाड़िया
- अबूझमाड़िया बस्तर के दक्षिणी (दोरली ,दंडामी , माड़िया तथा मुरिया) गोंडी के मध्य एक संक्रांति क्षेत्र की बोली है।
जरूर पढ़ें (अन्य CGPSC Notes) :
- छत्तिसगढ़ी भाषा का विकास एवं इतिहास
- छत्तीसगढ़ी भाषा का ज्ञान
- छत्तीसगढ़ी भाषा का साहित्य एवं प्रमुख साहित्यकार
- छत्तीसगढ़ी साहित्यकार एवं उनकी रचनाएं


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